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किसानों के लिए एक मोटर में दो मशीन चलाने का जुगाड़

किसान बचत कैसे करें  भारत में किसान के लिए बचत ही उसका मुनाफा है। क्योंकि बाजार उसके अनुकूल नहीं है। जो भी किसान फसल उगाता है, वो पशुपालन भी करता है। इस प्रकार किसान पशुपालन के द्वारा अतिरिक्त आय अर्जित करता है। ये अतिरिक्त आय ही उसकी बचत होती है। किसान अपने छोटे छोटे खोजी तरीकों से बचत के तरिके ढूंढता रहता है। आज हम यहाँ ऐसे ही एक तरीके की बात कर रहे है। जी हाँ किसान की बचत का एक तरीका जिसे अपनाकर किसान अपनी बचत व श्रम का बेहतर तरीके से उपयोग का सकता है। हम बात करेंगे चारा काटने वाली मशीन की। हर किसान पशुपालन करता है। पशुओं की देखरेख में उसका बहुत सा समय जाया होता है। अगर ऐसे तरीके अपनाकर वह कार्य करे तो उसके धन व समय की बचत होगी। आज हम इस वीडियो में हरा चारा काटने वाली मशीन के प्रयोग की बात करेंगे।  एक मोटर से दो मशीन कैसे चलाएं  जैसा की वीडियो में दिखाया गया है, सबसे पहले आप बाजार से 5 X 3 फ़ीट के दो पत्थर लेकर आएं। फिर चारा काटने वाली मशीन के पैरों के नाप से उस पर चार छेद करके नट व बोल्ट की सहायता से मशीन को अच्छे से उस पत्थर पर फिक्स कर लें। फिर बची हुयी जगह पर मोटर को ए

शेखावाटी-नवलगढ़

शेखावाटी की झलक नवलगढ़। 

नवलगढ़ क़स्बा आज के बावड़ी गेट , नानसा गेट, अगुणा दरवाजा, मण्डी गेट इन चार दरवाजो के मध्य बसा हुवा था।  18 वी सदी में ठाकुर नवल सिंह ने इस कस्बे की स्थापना की थी। जो आज राजस्थान के शेखावाटी में स्थित है। नवल सिंह शेखावाटी के नवलगढ़ और मंडावा प्रांत के शासक थे।

1836 में बनी नवलगढ़ की हवेलियों पर चित्रकारी बहुत ही कुशलता पूर्वक की गई है। इसके अलावा 1920 में बनी पोद्दारो की हवेली और बाला किला, (जिसे स्थानीय लोग कचिया गढ़ भी कहते है, क्योंकि इस पर चारो तरफ कांच जड़ा हुवा था।) जिसकी दीवारों पर लोक कहानियां चित्रित है, सैलानियों को अपनी और आकर्षित करती है। इसके अतिरिक्त जोधराज पाटोदिया हवेली, बंसीधर भगत हवेली, सेकसरिया हवेली, जैपुरिया हवेली, चोखानी हवेली, रूप निवास महल, गंगा मैया मंदिर, और ब्रिटिश क्लॉक टावर नवलगढ़ के अन्य आकर्षण है।

नवलगढ़ के शासक की एक कहानी 
राजस्थान के शेखावाटी अंचल के ठिकाने नवलगढ़, (झुंझनु जिले में) के शासक ठाकुर नवल सिंह शेखावत अपने खिराज मामले के साठ हजार रुपयों की बकाया पेटे बाईस हजार रूपये की हुण्डी लेकर दिल्ली जा रहे थे | उनका कारवां जैसे ही हरियाणा प्रान्त के दादरी कस्बे से गुजरा तो उन पर एक वैश्य महिला की नजर पड़ी| महाजन (वैश्य) महिला के घर उसकी पुत्री का विवाह था, वह शेखावाटी के कस्बे बगड़ सलामपुर की थी और उसके पीहर के सारे कुटुम्बी जन मर चुके थे। पीछे कोई बाकी नहीं बचा था। दादरी वाला महाजन यद्यपि अच्छा धनाढ्य व्यक्ति था। ठा. नवलसिंह उधर से निकले, उसके कुछ दिन बाद महाजन कन्या का पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न होने वाला था। महाजन की पत्नी ने ठाकुर की शेखावाटी की वेशभूषा और कारवां देखकर जान लिया कि वे उसी की मातृभूमि के रहने वाले हैं। उन्हें देखते ही उसका हृदय भर आया और वह फूट-फूट कर रोने लगी। अपने भाग्य को कोसने लगी कि यदि आज उसके पीहरवालों में से एक भी बचा हुआ होता, तो वह इसी वेषभूषा में उसकी पुत्री का भात भरने आता। यह एक ऐसा दिन होता है जब हर स्त्री अपने पीहर वालों को याद करती है। उसे रोती देखकर ठाकुर साहब ने पूछवाया कि क्यों रो रही है? जब उन्हें सारी बात का पता लगा तो उन्होंने उस महाजन पत्नी को कहलवाया- की “मैं ही तुम्हारा भाई हूँ और समय पर तुम्हारे घर भात भरने आऊँगा।" उसी वक्त वे उलटे पांव नवल गढ़ लौट आये। उन्होंने यह बात अपने घर में कही तो किसी को भी उनकी बात पर विश्वास नहीं हुआ और कुटुम्ब की दूसरी औरतें, उनके भोलेपन पर हँसने लगी। परन्तु ठा. नवलसिंह शेखावत ने जब अपना इरादा उक्त महाजन महिला को कहला भेजा, तो वे सभी आश्चर्य चकित रह गये। उधर महाजन महिला ने अपनी जातीय पंचायत बुलाकर ठाकुर साहब का स्वागत करने की तैयारी की। “ठा. नवलसिंह ने बाईस हजार रुपयों की हुण्डी, जो उस समय उनके पास थी, उस लड़की के मायरे में भेंट कर दी। जो खिराज के रूप में जमा कराना था, वो एक महिला के भाई बनकर उसकी पुत्री के विवाह में भात भरने में खर्च दिया। इस घटना से उस समय के शासकों की संवेदना को समझा जा सकता है। ठाकुर नवल सिंह शेखावत ने अपने क्षेत्र की महिला को अपनी बहन माना और उसके परिवार में किसी के न होने पर उसे जो दुःख हो रहा था वह दूर करने के लिए भात भरने की परम्परा निभाते हुये वह धन खर्च कर डाला जो उन्हें, राजकीय कोष में जमा कराना था। राजकीय कोष में उन्हें साठ हजार रूपये जमा कराने थे पर वे सिर्फ बाईस हजार रूपये की हुण्डी लेकर जमा कराने जा रहे थे, जो जाहिर करता है कि उनके राजकोष की आर्थिक दशा ठीक नहीं थी। साथ ही दिल्ली सल्तनत में समय पर खिराज जमा नहीं कराने पर सीधे सैनिक कार्यवाही का सामना करना पड़ता था। लेकिन ठाकुर नवल सिंह शेखावत ने दिल्ली सल्तनत की तरफ से संभावित किसी भी सैन्य कार्यवाही के परिणाम की चिंता किये बगैर उक्त महिला का भाई बनकर उसकी पुत्री के विवाह में भात भरते हुए बाईस हजार रूपये भेंट कर दिए। जो उनकी संवेदनशीलता प्रदर्शित करता है।

नवल गढ़ कैसे पहुंचे 
नवलगढ़ पहुँचने के लिए आप देश के किसी भी कोने से वाया जयपुर होकर आसानी से पहुँच सकते हैं। जयपुर से राजस्थान लोक परिवहन की बस आप को मुश्किल से 3 घंटे के सफर के बाद नवलगढ़ पहुँचा देगी। जयपुर से नवलगढ़ की दूरी लगभग 165 KM है। रेल मार्ग अभी आमान परिवर्तन के कारण अवरूद्ध है। 
अगर आप देहली की तरफ से आते है तो वाया रेवाड़ी होकर आ सकते है। देहली से नवलगढ़ लगभग 275 KM है।


  

Comments

  1. नवलगढ़ की स्थापना से पूर्व यहां रोहिली गाँव था. जिसके स्थान पर आज नवलगढ़ का पुराना गढ़ है. प्रत्येक कस्बे के मध्य में एक जोहड़ होता था जिसे 'वाटी' कहा जाता था. यह वाटी वेळी शब्द का अपभ्रंश है. जिस प्रकार मरू प्रदेश में दो बालुका स्तूपों के मध्य स्थान को तो पहाड़ी क्षेत्र में दो पहाड़ों के मध्य घाटी को वेल्ली कहा जाता है उसी प्रकार शेखावाटी में जोहड़ या तालाब जो निचली भूमि थी और जिसमें वर्षाजल एकत्रित होता था उसके तीन अथवा दो दिशाओं में लोगों द्वारा बसने के कारण यह भी एक वेळी का ही रूप था. स्थानीय भाषा में वेळी ही वाटी कहलाया. इन गांवों पर जब शेखावतों ने अपना अधिकार जमा लिया तो इन गाँवों के सम्मिलित समूह को ही शेखावाटी कहा जाने लगा.

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