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Showing posts from February, 2017

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किसानों के लिए एक मोटर में दो मशीन चलाने का जुगाड़

किसान बचत कैसे करें  भारत में किसान के लिए बचत ही उसका मुनाफा है। क्योंकि बाजार उसके अनुकूल नहीं है। जो भी किसान फसल उगाता है, वो पशुपालन भी करता है। इस प्रकार किसान पशुपालन के द्वारा अतिरिक्त आय अर्जित करता है। ये अतिरिक्त आय ही उसकी बचत होती है। किसान अपने छोटे छोटे खोजी तरीकों से बचत के तरिके ढूंढता रहता है। आज हम यहाँ ऐसे ही एक तरीके की बात कर रहे है। जी हाँ किसान की बचत का एक तरीका जिसे अपनाकर किसान अपनी बचत व श्रम का बेहतर तरीके से उपयोग का सकता है। हम बात करेंगे चारा काटने वाली मशीन की। हर किसान पशुपालन करता है। पशुओं की देखरेख में उसका बहुत सा समय जाया होता है। अगर ऐसे तरीके अपनाकर वह कार्य करे तो उसके धन व समय की बचत होगी। आज हम इस वीडियो में हरा चारा काटने वाली मशीन के प्रयोग की बात करेंगे।  एक मोटर से दो मशीन कैसे चलाएं  जैसा की वीडियो में दिखाया गया है, सबसे पहले आप बाजार से 5 X 3 फ़ीट के दो पत्थर लेकर आएं। फिर चारा काटने वाली मशीन के पैरों के नाप से उस पर चार छेद करके नट व बोल्ट की सहायता से मशीन को अच्छे से उस पत्थर पर फिक्स कर लें। फिर बची हुयी जगह पर मोटर को ए

पृथ्वी का अमृत-तिल का तेल सर्वोत्तम खाद्य पदार्थ

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*पृथ्वी का अमृत.. सफ़ेद तिल  कला तिल  तिल का तेल...* ( 5 मिनिट का समय निकाल कर पोस्ट को जरूर पढ़े ) यदि इस पृथ्वी पर उपलब्ध सर्वोत्तम खाद्य पदार्थों की बात की जाए तो तिल के तेल का नाम अवश्य आएगा और यही सर्वोत्तम पदार्थ बाजार में उपलब्ध नहीं है, और ना ही आने वाली पीढ़ियों को इसके गुण पता हैं, क्योंकि नई पीढ़ी तो टी वी के इश्तिहार देख कर ही सारा सामान ख़रीदती है।  तिल के तेल का प्रचार कंपनियाँ इसलिए नहीं करती क्योंकि इसके गुण जान लेने के बाद आप उन द्वारा बेचा जाने वाला तरल चिकना पदार्थ जिसे वह तेल कहते हैं लेना बंद कर देंगे।  तिल के तेल में इतनी ताकत होती है, कि यह पत्थर को भी चीर देता है। प्रयोग करके देखें.... आप पर्वत का पत्थर लिजिए और उसमे कटोरी के जैसा खडडा बना लिजिए, उसमे पानी, दुध, धी या तेजाब संसार में कोई सा भी कैमिकल, ऐसिड डाल दीजिए, पत्थर में वैसा का का वैसा ही रहेगा, कही नहीं जायेगा... लेकिन... अब आप उस कटोरी नुमा पत्थर में तिल का तेल डाल दीजिए, उस खड्डे में भर दिजिये.. 2 दिन बाद आप देखेंगे कि, तिल का तेल... पत्थर के अन्दर प्रवेश करके, पत्थर के न

National Portal of India - सभी सेवाएं एक ही जगह।

सभी सेवाएं एक ही जगह।   https://services.india.gov.in भारत सरकार ने लगभग 2000 सेवाएं एक ही छत के नीचे उपलब्ध करवाई है।  लेकिन हम जानकारी के अभाव में आज भी इधर उधर भटकते रहते है। कुछ जरुरी सेवाओं की सूचि यहाँ उपलब्ध है। 1. Apply for jobs on National Career Service Portal           https://www.ncs.gov.in/Pages/default.aspx ऊपर दिए गए लिंक पर आप भारत सरकार व केन्द्र सरकार के उपक्रमों में निकलने वाली विभिन्न नियुक्तियों के न लाइन फार्म भर सकते है।  2.  Apply online for new PAN card or corrections in PAN card https://www.onlineservices.nsdl.com/paam/endUserRegisterContact.html ऊपर दिए गए लिंक पर आप ऑनलाइन पैन कार्ड के लिए अप्लाई कर सकते है। अपने पुराने पैन कार्ड की जानकारी बदलने के लिए या उपडेट करने की लिए भी इसका इस्तेमाल कर सकते है।    3. Apply & search student scholarships online  https://www.vidyalakshmi.co.in/Students ऊपर दिए गए लिंक पर जाकर आप अपने बच्चों को विभिन्न योजनाओं के तहत मिलने वाली स्कॉलरशिप के लिए ऑन लाइन आवेदन कर सकते है।  4. Apply for Indi

शिव कौन है ? मृत्यु क्या है ? Who is Lord Shiva ?

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जमाना रंग अपना कुछ न कुछ सब पर चढ़ाता है।  मगर कुछ लोग रंग अपना चढ़ाते है ज़माने पर।। अमल से जिंदगी बनती तो हम सब ही बना लेते।  नवाजिश जब तलक उसकी न हो, कुछ हो नहीं सकता ।। यह कहानी स्वामी दयानंद के बचपन की है। उनके हदय में ऊपर लिखी दो जिज्ञासाएँ उत्पन्न हुयी थी।  इन जिज्ञासाओं का समाधान खोज कर उन्होंने ज़माने पर अपना रंग चढ़ा ही दिया। गुजरात (काठियावाड़)राज्य में टंकारा नाम का एक छोटा सा नगर है। यहाँ आज से लगभग एक शताब्दी पूर्व एक ब्राह्मण परिवार रहता था। इस परिवार के मुखिया कर्षण जी थे। यह परिवार धन धान्य से संपन्न था। कर्षण जी शिव भक्त थे। उनके घर फाल्गुन कृष्ण दशमी संवत १८८१ विक्रमी (सन १८२४) में एक बालक ने जन्म लिया, जिसका नाम मूलशंकर रखा गया। किसी को क्या पता था की यह बालक संसार को जीवन ज्योति प्रदान करेगा। पाखण्डो में फंसे हुए लोगो को ज्ञान का प्रकाश देकर सन्मार्ग पर चलाएगा। पिता पौराणिक परिपाटी के शिवभक्त थे, अतः वे पुत्र को भी अपने जैसा ही शिव भक्त बनाना चाहते थे। बालक मूलशंकर की बुद्धि तीव्र थी, अतः उसने बाल्यावस्था में ही पुराणों की अनेक कथाएं याद कर ली, साथ ही दस

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ईश्वर कहाँ है ?

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ईश्वर कहाँ है ?  भोलेनाथ , शिव , शिवम् , महादेव, महेश माता-पिता और आचार्य ये तीनों गुरु कहलाते हैं। माता पहला गुरु है। बच्चे को पहली शिक्षा माता से ही मिलती है माता बच्चे को व्यावहारिक शिक्षा देती है। उसे अपने शरीर के अंगों का, सगे सम्बन्धियों का, बच्चे के संपर्क में आने वाले पशु पक्षियों का ज्ञान कराती है। उसे उठना बैठना, हँसना, बोलना, दूसरों का आदर करना व स्नेह करना सिखाती है। माता पुत्र को जो शिक्षा देती है, उसमें पिता भी सहयोग करते हैं। जब बच्चा बड़ा होता है तो उसकी जिज्ञासाएं भी बढ़ने लगती है। इन जिज्ञासाओं को उन्नत और प्रोत्साहित करने की मुख्य जिम्मेदारी पिता की होती है, माता सहयोग करती है। आचार्य का शिक्षा सम्बंधित उत्तरदायित्व उपनयन संस्कार के साथ या यों कहे कि विद्यालय में प्रवेश के साथ आरम्भ होता है। पुराने समय में बड़ो के प्रति शालीनता के तथा ईश्वर भक्ति के संस्कार बचपन में ही डाल दिए जाते थे। ईश्वर कैसा है? कहाँ रहता है? क्या करता है? आदि बातें बच्चा पिता से ही सीख लेता है। उन दिनों आजीविका की समस्या इतनी विकट नहीं थी।  पिता को इतना समय आसानी से मिल जाता था कि वह पुत्र

Valentine day and .........?

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वेलेंटाइन और हम भारतीय।  वैलेंटाइन डे आप कैसे मनांते हैं? क्या है इसमें, ये किसकी परम्परा है ? ये कहाँ से खड़ा हुवा था ? इटली में पैदा हुवा एक साधारण इंसान। कट्टर ईसाई।  वैलेंटाइन उन्होंने एक लड़की के साथ शादी की थी। वहां के राजा को ये नागवार गुजर था। वे उन्हें ईसायियत से और इस तरह के प्रेम आचरण जो की आने वाली पीढ़ी को गलत सन्देश देने वाली थी, से बहार करना चाहते थे। तात्कालिक परिस्थितियों में राजा गलत नहीं थे। 14 फरवरी को उनकी मौत हुयी और वहां का एक समुदाय विशेष इसे एक उत्सव के रूप में मनाने लगा।  धीरे धीरे समय ने करवट ली। जो समुदाय विशेष इसे शुरू में मनाने लगा था, वो वहां का शक्तिशाली समुदाय था। इसे एक त्यौहार के रूप में मनाने लगा। देखा देखी वहां का निम्न वर्ग शक्तिशाली समुदाय के निकट आने की जुगत में उनका अनुसरण करने लगा। शक्तिशाली समुदाय ने उन्हें स्व संत घोषित कर दिया। तदुपरांत यूरोप भयंकर सक्रमण काल से गुजरा और लोग भूल गए।  परम्परा चलती रही। संत की उपाधि लग चुकी थी। यूरोपीय लोग अपनी परम्पराओ से बहूत प्यार करते है। हम भारतीय उनकी नक़ल करते है। ओधोगिक विकास ने माइग्रेशन को बढ़ावा दिया।

शेखवाटी में शादी कैसे होती है ?

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शेखावाटी, शादी और डांस। भारत के विभिन्न प्रान्तों में विवाह की अलग अलग रश्मे है। हर प्रान्त में विवाह के लिए कुछ रश्मों व रीति -रिवाजों को अपनाया गया है। हर जगह के रीति रिवाज अपने आप में खास है। भारत में विवाह एक खास अवसर है। आज हम यहाँ शेखावाटी में विवाह की कुछ रश्मों के बारे में जानते है। 1 . सगाई शेखावाटी में विवाह से पहले लड़का और लड़की के परिवार आपस में मिलकर सगाई की रस्म पूरी करते हैं , जो लगभग पूरे भारत में एक समान ही है।  यानि हर प्रान्त में सगाई की रस्म होती है।  लेकिन शेखावाटी में ये परिवार के ही सदस्य आपस में एक दूसरे को बताते हैं , की फलां गांव में लड़की है, या लड़का है।  फिर लड़के या लड़की के घर वाले अपने कुछ निकट सम्बन्धियों को लेकर उस गांव में जाते है।  पहले लड़की वाले लड़के के घर जाते थे।  आजकल लिंगानुपात में गिरावट होने की वजह से लड़के वाले लड़की के घर जाते है। लड़की को देखने से पहले ही उसके बारे में पड़ताल कर ली जाती है।  उसके घर जाने का मकसद ये होता है की लड़की वाले राजी हो जाएँ और हमारे लड़के को देखने आ जाएँ। फिर लड़की वाले लड़के के घर वालों व लड़के के बारे में जाँच पड़ताल कर क

बता मेरे यार सुदामा रै…..

स्कूल की छात्राओं का YouTube पर धमाल, डाला ऐसा गाना, 81 लाख ने सुना भगवान कृष्ण और सुदामा पर सरकारी स्कूल की लड़कियों दुवारा गाया गया गाना सोसल मीडिया पर धमाल मचा रहा है। ये गीत इन दिनों यू-ट्यूब और तमाम दूसरी साइट्स पर भी छाया हुआ है। रोहतक के सांघी गांव के डॉ. स्वरूप सिंह गवर्नमेंट मॉडल संस्कृति स्कूल की 9वीं, 10वीं और 11वीं की छात्राओं द्वारा गाए गए इस गीत ‘बता मेरे यार सुदामा रै…..भाई घणे दिना में आया’ को लगभग 81 लाख लोग सुन चुके हैं। संगीत के साथ पढ़ाई में भी अव्वल ये बच्चियों विधि, ईशा, शीतल, मनीषा, मुस्कान और रिंकू को सराहना के फोन देश के कोने-कोने से आ रहे हैं। इन बच्चियों ने अपनी कामयाबी का श्रेय माता- पिता और म्यूजिक टीचर सोमेश जांगड़ा को दिया है।आप भी जब इस गाने को सुनेंगे तो बस सुनते ही रह जाओगे।जिस तरह से इन लड़कियों ने ये गाना गाया है इस गाने की मिठास दिल को सीधा छू रही है। एक बात तो है भारत में प्रतिभा की कमी बिल्कुल भी नही है और उस प्रतिभा को सोसल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म मिला है जिसने पुरे भारत से चुन चुन कर प्रतिभाशाली लोगों को नए मुकाम तक पंहुचा दिया है।

शेखावाटी - मंडावा

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शेखावाटी मंडावा  शेखावाटी मंडावा  में भर्मण के लिए आज अपन मंडावा की सैर करेंगे। मंडावा पहुँचने के लिए आप को जयपुर से लगभग 200 किमी का सफर करना पड़ेगा।  अगर आप देहली की तरफ से आते है तो, आप को लगभग 275 -280 किमी का सफर करना पड़ेगा। मंडावा शेखावाटी के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है।  विदेश से आने वाले पर्यटको के मानचित्र में जयपुर के बाद दूसरे स्थान पर आता है। मंडावा शेखावाटी के लगभग मध्य में स्थित है।  यहाँ की आबो हवा उष्ण कटिबंधीय होने के कारन फरवरी मार्च का महीना भर्मण के लिए बहूत ही उत्तम है। मंडावा आने वाले पर्यटक मंडावा , नवलगढ़ , फतेहपुर , इन तीन स्थानों को अपनी लिस्ट में प्रमुखता से रखते है। क्या क्या देखें। 1. मंडावा फोर्ट 18 वीं. शताब्दी का मंडावा का किला जो वहां के शासक ठा. नवल सिंह ने बनवाया था।  ठा. नवल सिंह मंडावा के आलावा नवलगढ़ ठिकाने के भी राजा थे। किला बहूत ही सूंदर नक्कासी, गुम्बद, मीनारो के साथ बना हुवा है. आज भी अपने उसी स्वरूप में है। मंडावा किले का आंतरिक भाग   2. मंडावा का चार बुर्ज कुआँ ये कुआं जिसके चार बड़ी बड़ी मीनारें है, वास्तव में देखने लायक है। उ

बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें

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बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें आप सभी को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें।  आज के दिन से प्रकृति अपना सौन्दर्य निखारने लगती है जो लगभग तीन महीने तक चरम पर रहेगा।  उसके बाद गर्मियों की ऋतु में धीरे धीरे इसके सौन्दर्य में थोड़ी कमी आती है, जो वर्षा ऋतु में पुनः लौट आती है। स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक रूप से ये 2 -3 महीने स्वास्थ्य के लिए बहूत महत्वपूर्ण होते है।  जिस तरह से प्रकृति में बदलाव आता है, वैसे हम अपने स्वस्थ्य में भी बदलाव ला सकते है। जैसे पेड़ों पर नयी कोंपल, फूल पत्तियां आती है, वैसे ही हमारे शरीर में भी रक्त का बदलाव होता है। अगर इस समय को हम थोड़ी सी सावधानी के साथ औषधीय र्रोप से लें तो प्राकृतिक रूप से स्वस्थ रहेंगें। मानसिक रूप से तनाव मुक्त रहने के लिए उत्तम समय है। ग्रंथों में वसंत के मौसम को सारी ऋतुओं का राजा इसीलिए कहा है। प्रकृति का जादू  जब हम जंगल, समंदर, नदी किनारे या पहाड़ पर फूलों को देखते हैं, तो मन को एक तरह का सुकून मिलता है।  प्रकृति की यह विविधता देखकर हम आश्चर्य से भर जाते है।  कितने ही दुखी हों, घने जंगल, कुदरती बाग़ में चले जाइये।  पेड़ के पत्तों