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Showing posts from December, 2016

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किसानों के लिए एक मोटर में दो मशीन चलाने का जुगाड़

किसान बचत कैसे करें  भारत में किसान के लिए बचत ही उसका मुनाफा है। क्योंकि बाजार उसके अनुकूल नहीं है। जो भी किसान फसल उगाता है, वो पशुपालन भी करता है। इस प्रकार किसान पशुपालन के द्वारा अतिरिक्त आय अर्जित करता है। ये अतिरिक्त आय ही उसकी बचत होती है। किसान अपने छोटे छोटे खोजी तरीकों से बचत के तरिके ढूंढता रहता है। आज हम यहाँ ऐसे ही एक तरीके की बात कर रहे है। जी हाँ किसान की बचत का एक तरीका जिसे अपनाकर किसान अपनी बचत व श्रम का बेहतर तरीके से उपयोग का सकता है। हम बात करेंगे चारा काटने वाली मशीन की। हर किसान पशुपालन करता है। पशुओं की देखरेख में उसका बहुत सा समय जाया होता है। अगर ऐसे तरीके अपनाकर वह कार्य करे तो उसके धन व समय की बचत होगी। आज हम इस वीडियो में हरा चारा काटने वाली मशीन के प्रयोग की बात करेंगे।  एक मोटर से दो मशीन कैसे चलाएं  जैसा की वीडियो में दिखाया गया है, सबसे पहले आप बाजार से 5 X 3 फ़ीट के दो पत्थर लेकर आएं। फिर चारा काटने वाली मशीन के पैरों के नाप से उस पर चार छेद करके नट व बोल्ट की सहायता से मशीन को अच्छे से उस पत्थर पर फिक्स कर लें। फिर बची हुयी जगह पर मोटर को ए

देखो वीर जवानों....!

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देखो वीर जवानों....! कर चले हम फ़िदा जानो तन साथियों.........! आज हम साल के आखरी समय में खुशियां मना रहे हैं। हम में से कोई भी उन परिवारों को याद नहीं कर रहा, जिन परिवारों के लाडलों ने अपनी जान पर खेल कर इस देश की रक्षा की और अपनी जान की बाजी लगा कर चले गए। क्या उस माँ को याद नहीं है उस का बेटा , उस पिता की बूढी आँखे अपने बेटे की हम उमर नोजवानो को ताकती है, कि भूल से भी एक झलक अपने बेटे की सी दिख जाये। उस वीरांगना के मन में क्या है ? कोई नहीं जानता। वो बच्चे इन छुटियों में इंतजार कर रहे हैं,  पतंग और दूसरी खेलने की चीजों का।  लेकिन नहीं है , कोई नहीं है जो इस बार उनको ये सब दिला के लाएगा। क्या विडम्बना है एक सुहागन के  जीवन की उसने आखिरी समय में जी भर के देखा भी नहीं, और विधवा हो कर जीवन भर का दुःख ले लिया। कांपती भरभराती आवाज से बूढा पिता अपने बेटे के बच्चों को सम्हाल रहा है ताकि, बचे हुए जीवन में  इस परिवार के लिए कुछ कर सके। किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, इन शहीदों के परिवारों को ये सिर्फ इन परिवारों के नजदीक रहने वाला ही जान सकता है।  ये चित्र एक शहीद के अंतिम संस्कार

Happy new year message

From my whatsapp. 🍀 Read with patience 🍀 USED  vs. LOVED While a man was polishing his new car, his 6 yr old son picked up a stone and scratched lines on the side of the car. In anger, the man took the child's hand and hit it many times; not realising he was using a wrench. At the hospital, the child lost all his fingers due to multiple fractures. When the child saw his father... with painful eyes he asked, 'Dad when will my fingers grow back?' The man was so hurt and speechless; he went back to his car and kicked it a lot of times. Devastated by his own actions..... sitting in front of that car he looked at the scratches; the child had written 'LOVE YOU DAD' The next day that man committed suicide. . . Anger and Love have no limits; choose the latter to have a beautiful, lovely life..... Things are to be used and people are to be loved. But the problem in today's world is that,

लहसुन, मिर्च वाली चटनी

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लहसुन, मिर्च वाली चटनी  लहसुन मिर्च की चटनी बनाने के लिए सबसे पहले जरुरी सामग्री :- 10 साबूत लाल मिर्च 50 ग्राम धनिया 20 ग्राम हल्दी 10 ग्राम मेथी दाना 100 ग्राम लहसून 100 ग्राम देसी घी 200 ग्राम तैल खाने का छोंक के लिए जीरा, कलौंजी। नमक स्वाद अनुसार बाद में डालने के लिए। उपरोक्त सामग्री साबूत अवस्था में होनी चाहिए। अब सबसे पहले लाल मिर्च को बीज अलग करके पानी में भिगो दीजिये।  मेथी दाने को भी अलग से भिगो दीजिये। लहसून को छील कर साफ़ कर लीजिये।  अब एक घंटे बाद जब लाल मिर्च भीग जाये तो बहुत अच्छा रहेगा अगर आप के पास लोड़ी भाटा (मिर्च को बारीक करने के लिए पत्थर ) हो।  अगर ये नहीं है , तो आप मिक्शी में मिर्च को पीस सकते है।  लेकिन जो स्वाद भाटे पर पिसाई से आता है, वो मिक्शी में नहीं आएगा। अब जब मिर्च, धनिया,हल्दी, लहसून को भाटे पर पीस रहे है, तो पानी के साथ साथ लास्ट में छाछ का प्रयोग करे।  जब सारी सामग्री में लोच आने लगे उस वक्त आप थोड़ी थोड़ी मात्रा में छाछ मिलाकर पिसाई करते जाएँ।  जब अछी तरह से लोच आ जाये तो नमक मिलाकर एक कटोरी में निकल ले। अब एक छोंक मारने वाले बर्तन में देसी

A Small Story

From my face book wall अगर मेंढक को गर्मा गर्म उबलते पानी में डाल दें तो वो छलांग लगा कर बाहर आ जाएगा और उसी मेंढक को अगर सामान्य तापमान पर पानी से भरे बर्तन में रख दें और पानी धीरे धीरे गरम करने लगें तो क्या होगा ? मेंढक फौरन मर जाएगा ? जी नहीं.... ऐसा बहुत देर के बाद होगा... दरअसल होता ये है कि जैसे जैसे पानी का तापमान बढता है, मेढक उस तापमान के हिसाब से अपने शरीर को Adjust करने लगता है।         पानी का तापमान, खौलने लायक पहुंचने तक, वो ऐसा ही करता रहता है।अपनी पूरी उर्जा वो पानी के तापमान से तालमेल बनाने में खर्च करता रहता है।लेकिन जब पानी खौलने को होता है और वो अपने Boiling Point तक पहुंच जाता है, तब मेढक अपने शरीर को उसके अनुसार समायोजित नहीं कर पाता है, और अब वो पानी से बाहर आने के लिए, छलांग लगाने की कोशिश करता है।           लेकिन अब ये मुमकिन नहीं है। क्योंकि अपनी छलाँग लगाने की क्षमता के बावजूद , मेंढक ने अपनी सारी ऊर्जा वातावरण के साथ खुद को Adjust करने में खर्च कर दी है।           अब पानी से बाहर आने के लिए छलांग लगाने की शक्ति, उस में बची ही नहीं I वो पानी से

बाजरा की रोटी और। .........

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बाजरा की रोटी और। ......... बाजरे के आटे की रोटी, लहसुन की मिर्च वाली चटनी, हरी प्याज का रायता। सबसे पहले आपको बाजरे का आटा लेना होगा। फिर जैसे गेहूं के आटे को रोटी बनाने के लिए गुंथा जाता है, वैसे न गूंथ के केवल एक रोटी में समाये उतना आटा लेना है। उसमे धीरे धीरे इतना पानी मिलाओ की आटा एक गोल मोल पिंड का आकर ले सके। न ज्यादा गीला ना ज्यादा सख्त। अब इसे धीरे धीरे रोटी की सकल देने के लिए अपने दोनों हाथों में फ़ैलाने की कोशिश करें। कभी इस हाथ में कभी उस हाथ में।  यह प्रक्रिया जल्दी जल्दी एक हाथ से दूसरे हाथ में जारी रखे।  देखते जाएँ रोटी अपनी सकल ले रही है।  वैसे यह प्रेक्टिस से आसानी से हो जाता है।  एक दो बार कोशिश करेंगे तो आसान हो जायेगा। अब जब रोटी अपनी गोल सकल ले ले तो इसे गर्म तवे पर डाल दें।  उचित रहेगा तवा चूल्हे पर हो और आपके पास पर्याप्त लकड़ी (सूखी लकड़ी ) हो।  आंच ज्यादा मंदी और ज्यादा  कम न हो। चूल्हे में पर्याप्त मात्रा में खीरे (सुखी लकड़ी जलने के बाद बने चारकोल जो लाल गर्म) हों। अब जब इतना हो जाये तो तवे पर रोटी डाल दे। धीरे धीरे रोटी सिकने की अवस्था में आएगी। आप 3 मिनट बाद

मेरा गांव

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युग युग की बात है।

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हम कितने अागे निकल आये । एक जमाना था जब घर की महिलाएं अल सुबह उठकर घर के सद्स्यों के लिए चक्की से अनाज की पिसाई करती थी। घर के अन्य सद्स्यों के उठने से पहले वे ये काम निपटा लेती थी। उस समय संयुक्त परिवार हुआ करते थे। परिवार में 10-12 सद्स्यों का होना मामुली बात होती थी। कल्पना करो घर की एक - दो महिलाओं के जिम्मे यह काम होता था। कितनी शारीरिक मेहनत होती थी। स्वास्थ्य का राज इसी शारीरिक मेहनत के पीछे छिपा था। आज माॅर्डन लेडी जिम में जाकर पैसा देकर भी वह स्वास्थ्य नही कमा पाती है। कमोबेस यही हालत पुरूष की है। पुरूषों का काम भी कोई कम मेहनत वाला नही था। कुॅएं से रस्सी के द्वारा पानी निकालना घर के सदस्यों के अलावा, घर में जितने पशु होते थे, उन्हें भी कुँए से निकाल कर पानी पीलाना पड़ता था। आज परिस्थतियों में आमुलचुल परिवर्तन हो चुका है। आज की जैनेरेशन को अगर यह फोटो दिखाई जाये तो कौतुहल से पुछेगें कि यह क्या है। अगर कँए से पानी रस्सी के द्वारा पानी निकालने की बात बताओगे तो यकीन ही नही करेगें। शक हो तो बात कर के देख लेना। धन्यवाद राजेश कुमार 9680615806

नरेगा

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नरेगा भारत के ग्रामिण क्षेत्र की आर्थिक जरूरतों को पुरा करने में कुछ हद तक सफल रही है। लेकिन इसके दुसरे प्रभाव ज्यादा नुकसानदायक साबित हुए हैं। नरेगा से ग्रामिण क्षेत्र में मजदुुरी की दरों में अप्रत्यासित रूप से वृद्धि हुई है। वृद्धि तक तो ठीक है लेकिन इस योजना ने ग्रामिण क्षेत्र की श्रम शक्ति को नकारा बना दिया है। पहले जो मजदुर नियमित रूप से मजदुरी पर जाया करता था, वह अब नरेगा की वजह से अपनी कार्य क्षमता खोता जा रहा है। क्योकि वह नरेगा पर निर्भर होने लगा है। नरेगा में नियमित रूप से मजदुरी नही है। साथ ही नरेगा अगर सही मायनों में लागु व कार्यान्वित होती तो अब तक के कार्या दिवसों के आधार पर भारत की तस्वीर बदल गई होती।

Funny Sunday

आज रविवार है, तो थोड़ा मस्ती मजाक हो जाये। पेश है, क्लासिकल संगीत की वो उँचाईयाँ जिनको सुनकर आप हँस हँस कर लोट पोट हो जायेंगें। हर इंसान के मन में एक कलाकार होता है, और वो अपनी कला का प्रदर्शन किस तरह से करता है, एक अंदाज देखिय। वैसे संगीत के बड़े बड़े दिग्गजो ने अभी तक एैसी प्रस्तुति नही दी होगी। शायद देखी भी न हो। देखिये आनंद लिजिये, शेयर किजिए।

लूट सैै भई

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 लोकतंत्र का चौथा स्तंम्भ कहे जाने वाले प्रिंट मिडिया नें लोगौं को, लोगौं को लूटने की खुली छूट दे रखी है। कर तो ये काम हर कोई रहा है, लेकिन लोकतंत्र के प्रहरी, रखवाले, समाज का दर्पण आदि महत्तवपूर्ण उपाधियों से सुशोभित ऐसी संस्थाऔ को इस प्रकार के तुच्छ लाभ से दूर रहकर समाज में जागरूकता लानी चाहिए। आये दिन हम अखबारों में ऐसै ढेर सारे विज्ञापन देखते है, जो रोजगार उपलब्ध कराने में बेरोजगारों की मदद करते हैं। ये विज्ञापन बेरोजगारों को लुभाते है, व दिये गये नंबरो पर काॅल करते है, वहां बैठे अक्सपर्ट ठग उनके फोन रिसिव करते हैं। उसके बाद सिलसिला शुरू होता है ठगी का, जो लुट जाने के बाद समझ में आता है। कभी बिना इंटरव्यु के नौकरी, कभी घर बैठे कमाई, कभी अपने घर पर मोबाईल टाॅवर लगाने के, कभी विजेस भेजने के, कभी आॅनलाईन पार्ट टाईम जोब। यह तो एक बानगी है । न जाने किस किस प्रकार के लुभावने विज्ञापनों से बेरोजगारों को ठगा जा रहा है। जरूरत है ऐसै लुभावने विज्ञापनों पर रोक लगाने की, जिससे बेरोजगारों के साथ होने वाले छल को रोका जा सके।

अलगोजा

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अलगोजा ये एक वाद्द यंत्र है। इसे बजाने वाला निपुण कलाकार होता है। इस वाद्द यंत्र में श्वास लेकर मूँह के द्वारा लगातार बिना क्रम टुटे निकालने में निपुण ही इसे बजा सकता है। प्राय: यह मेलों के अवसर पर बजाते है। इस से मधुर स्वर लहरी निकलती है। सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है। इसेे बजाने वाले कलाकार बहुत कम है। रात के समय जब इसकी स्वर लहरियां कानो में पड़ती है तो लगता है जैसे शहद में भीगी हुई मधुर झंकार हो। अक्सर मेंलो में बजाये जाने वाले इस यंत्र के स्रोता बहुत है, लेकिन सुनने को आसानी से नही मिलता है। अब आप कभी किसी ग्रामिण परिवेश के मेले में जाये तो आप को यह सुनाने बजाने वाले मिल जायेगें । जहाँ दर्शकों की भीड़ सी लगी हो वहाँ पर जाकर देखना। गोर से देखना व सुनना यह बहुत ही विलक्षण कला है। खासकर पशु मेलें में आसानी से देख सुन सकते हैं। मैं आप को सुना तो नही सकता लेकिन बजाते हुए एक कलाकार की फोटो जरूर शेयर कर रहा हूँ। इसको देखकर ही आनंद से भर जायेगें। यह नवलगढ़ के बदराना पशु मेले की है।

शहर से गांव की और ...: शहर से गांव की और

शहर से गांव की और ...: शहर से गांव की और

शहर से गांव की और

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शहर से गांव की और कितना अल्हड़ जीवन था बचपन का। न कोई टारगेट, न कोई काॅम्पिटशन, खाया पीया मस्त। खेलना दिनभर, छोटे छोटे झगड़े, रूठना, आसानी से फिर मान भी जाना। ये अपने गांवो में ही था। खुला वातावरण, शुद्ध ताजा हवा, शुद्ध खाना सब गांंवो में मिलता था। शाम को जब खेतों से ढोर, पशुओं के साथ लौटते तो उनके पैरों से धुएं का गुब्बार सा बन जाता था। वह गुब्बार आसमान में छा जाता और उससे मिट्टी की सौंधी खुशबु आती, बड़ा अच्छा लगता था। मजे कि बात कोई एलर्जी, कोई बिमारी नही होती थी। इसके पीच्छे कारण यह था कि, शुद्ध देशी खान पान से इम्युनिटी पावर इतना बढ़ जाता था की कोई रोग पास नही फटकता था। शाम को चिमन्नी (काँच की छोटी बोतल में कपड़े की बत्ती बनाकर ढक्कन में छेद कर के थोड़ा सा बाहर निकालकर मिट्टी का तैल भरकर रखते थे) की रोशनी में चुल्हे पर बनते हुए खाना देखने का आनंद ही कुछ और था। काश वो बचपन लौटा दे कोई। शहर की आपा धापी से दूर शांत चाँदनी रातों का मज्जा आज भी गुदगुदा जाता है। राजेश भास्कर 9680615806

प्रकृति

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प्रकृति अपना सौंदर्य पता नही कितने रूप में दिखाती है। कभी बारीश कभी गरमी तो कभी सर्दी के रूप में। वर्षा के मौषम में चारो तरफ हरियाली होती है, गर्मी के समय भंयकर धूप हमें हलकान करती है, तो सर्दी के समय ठंड परेशान करती है। वही सर्दी का मौषम स्वास्थ्य की दृष्टि से बहूत अच्छा होता है। आप सर्दी के मौषम में अपने स्वास्थ्य को उत्तम बना सकते है। क्योकी इस मौषम में जल्दी से थकान नही महसूस होती है। खान पान की दृष्टि से सर्दी का मौषम बाकी मौषम की अपेक्षा उत्तम माना गया है। इस मौषम में शरीर को ज्यादा ऊर्जा की आवश्कता होती है, इसलिए गरिष्ट भौजन भी आसानी से हजम हो जाता है। गांवो में इस मौषम में गूंद के लड्डू बनाकर खाये जाते है। खेतो में गैहूँ, चना, सरसों, जौ, मैथी की फसल लहलाती है, जिससे प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है। मेरे खेत का इस मौषम का एक चित्र यहाँ आपके अवलोकन के लिए प्रस्तुत है।

तुम कौन हो?

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     अब मेरी बात मान लो, क्योंकि वो तो 1948 में ही चला गया था।  दूध को दुखी करो तो दही बनता है दही को सताने से मक्खन बनता है मक्खन को सताने से घी बनता है दूध से महंगा दही है, दही से महंगा मक्खन है, और मक्खन से महंगा घी है किन्तु इन चारों का रंग एक ही है  *सफेद* इसका अर्थ है बाऱ- बार दुख और संकट आने पर भी जो इंसान अपना रंग नहीं बदलता, समाज में उसका ही मूल्य बढ़ता है *दूध* उपयोगी है किंतु एक ही दिन के लिए, फिर वो *खराब* हो जाता है....!! *दूध* में एक बूंद *छाछ* डालने से वह *दही* बन जाता है जो केवल दो और दिन *टिकता* है  *दही* का मंथन करने पर *मक्खन* बन जाती है, यह और तीन दिन टिकता है....!!  *मक्खन* को उबालकर *घी* बनता है *घी* कभी खराब नहीं होता....! एक ही दिन में बिगड़ने वाले *दूध* में कभी नहीं बिगड़ने वाला *घी* छिपा है....!! इसी तरह आपका *मन* भी अथाह *शक्तियों* से भरा है, उसमें कुछ *सकारात्मक विचार* डालो अपने आपको *मथो* अर्थात *चिंतन* करो.... अपने *जीवन* को और *तपाओ* और तब देखना *आप कभी हार नहीं मानने वाले सदाबहार व्यक्ति बन जाओगे....!!*

मोती डूँगरी गणेश मंदिर

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मोती डूँगरी गणेश मंदिर, जयपुर के ख्यात मंदिरो में से एक है। यहाँ पर हर बुधवार को श्रदालुओं का मेला लगता है। मंदिर जयपुर के मुख्य मार्ग JLN (जवाहर लाल नेहरू) मार्ग पर मोति डूँगरी की तलहटी में स्थित है। हाल के वर्षों में यह राज्य सरकार व JDA के कारण विवादों में था। विवाद का मुख्य कारण श्रदालुओं को नियंत्रित लिए लगाई गई रैलिंग थी। जिसे अब मंदिर प्रशासन व श्रदालुओं की मांग व न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण हटाना शुरू किया है। मंदिर अब श्रदालुओं को पहले से ज्यादा आकर्षित कर रहा है। राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले में स्थित गणेश मंदिर के बाद श्रदालुओं की आमद में ये दुसरे नंबर पर आता है। गणेश चतुर्थिि पर विशेष आयोजन होते है, व दूसरे दिन सवारी निकलती है, जो 15 km दूर पहाडियों में गढ़ गणेश पहाड़ी पर जाकर विषर्जित होती है। आज बुधवार है और आज यहाँ पर श्रदालुओं की भीड़ धीरे धीरे बढ़ रही है। बोलो गणेश जी महाराज की जय।

राजस्थान के मेले

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राजस्थान मेलों के लिए मशहूर है। राजस्थान के नवलगढ़ कस्बे के सुप्रसिद्ध बदराना पशु मेले में लगी एक स्टाल का चित्र। नवलगढ़ हवेलियों के लिए विश्व विख्यात है। सर्दी के मौसम में यहाँँ पर विदेशी सैलानियों की आवक बहुत बढ जाती है। नवलगढ़ कस्बा राजस्थान के झुन्झुनूंं जिले में स्थित है। यहाँ पर पहूँचने के लिए आप जयपुर या दिल्ली से रेल, बस के माध्यम से सफर कर सकते हैं। कस्बा शेखावाटी के प्रमुख भ्रमणीय स्थलों में से एक है। कस्बे में प्रमुख दर्शनिय स्थलों में , पोदारों, पाटोदिया, सेकसरिया, जयपुरिया, हवेलिया हैं। जिन पर मुगलकालिन शैली में चित्रकारी देखते ही बनती है।

Fun time थोड़ा तो होना ही चाहिए।

Technological JOKE 😜😜😜😜😝😝😝😝😝 . . एक महिला ने .. "IT TECHNICAL Support" .. को PHONE किया। . . महिला---"मुझे HUSBAND PROGRAM में दिक्कत आ रही है। " . . Technical Support---" कब से है यह दिक्कत...?" . . महिला---" देखिए, पिछले साल मैंने अपने BOYFRIEND को UPDATE कर HUSBAND INSTALL किया था। . . उसके बाद से ही पूरा SYSTEM SLOW हो गया है। . . खासतौर पर ‘FLOWER’ और ‘JEWELLERY’ APPLICATION ने काम करना बंद कर दिया है। . . ये Apps ‘BOYFRIEND' में अच्छी चलती थीं। इसके अलावा HUSBAND ने ‘ROMANCE' Program भी UNINSTALL कर दिया है। . . इसकी जगह ‘NEWS', ‘MONEY' और ‘CRICKET' जैसे फालतू Program INSTALL हो गए हैं। . .  अब मैं इसे कैसे सुधारूँ ...??? Technical Support---" जी Madam, ‘HUSBAND Install करने के बाद ऐसी समस्या होती रहती है। . . सबसे पहले इस बात का ध्यान रखें कि ‘BOYFRIEND' एक ENTERTAINMENT DEMO PACKAGE था, . . जबकि ‘HUSBAND OPERATING SYSTEM है। . . इसे सुधारने के लिए ‘आँसू Pro

जयपुर मे मेट्रो

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जयपुर मे मेट्रो रेल सफलतापूर्वक द्वितिय सौपान की तरफ बढ़ रही है। प्रथम चरण में चांदपोल से मानसरोवर तक 9 स्टेशन कवर किये गये। द्वितिय चरण में चांदपोल से चोपड़ की तरफ का काम युद्ध समतर पर चल रहा है। आम लोगों को बहुत राहत मिली और आवागमन में सुविधा के साथ समय व धन दोनों की बचत हुई। इसी कड़ी़ी में मैं और मेरा परिवार गत 14 नवम्बर 2016. बाल दिवस पर बच्चो की स्पेशल डिमांड के तहत मेट्रो का सफर किया ।

ठेट राजस्थान

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सांई ईतना दिजिए, जामे कुटुंब समाय। में भी भुखा न रहूँ, साधु न भुखा जाय॥ हल्की हल्की ठंड की शुरूआत हो चुकि है। एेसै में चुल्हे के पास बैठकर गरमा गरम खाने का मजा साथ में परिवार हो तो और बढ़ जाता है। मेरे बच्चे अपनी मम्मी के पास बेठ कर खाने का इंतजार कर रहे हैं। यह फोटो मेंनै पिछले वर्ष दिसम्बर महिने में लिया था। यादें ताजा हो गई।

राजस्थान के मेले का एक फोटो

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राजस्थान के मेलों की बात ही निराली है। अलगोजो के साथ फोक म्युजिक और समुह गान आनंद की चरम सीमा तक ले जाता है। पसंद आये तो कमेंट जरूर लिखे । संग्रह मे और है जिनको आप तक पहुंचा सकूं।

नोट बंदी और ईमान

प्रिय मित्रों..! मैंने कहा था *बैंक कर्मियों को इतनी जल्दी सैलूट मत मारो।* *बेईमानी इस देश की रग-रग में..!* _____________________________ इस देश में ईमानदार वही है जिसके टेबल पर पैसा नहीं है । जिनके टेबल पर पैसा नहीं वो सही टाइम पर ऑफिस छोड़ देते हैं, और वही जब टेबल पर माल आने लगता है तो 8 बजे शाम तक जनसेवा करते हैं। इस देश में *पुलिस भ्रष्ट* तभी तक लगती है जब तक उनका बेटा दारोगा में भर्ती नही हुअा। इस देश में *टीचर तभी तक निट्ठले* लगते हैं जब तक उनकी बेटी टीचर नही बनी है। बुरा न माने जैसे *जर्मन जन्म से ही योद्धा, जापानी जन्म से नियम मानने वाले, वैसे ही हम जन्म से भ्रष्ट होते है।* भ्रष्टता हमारे ब्लड और संस्कार में ही है, ये मात्र कानून बनाने से नहीं जाने वाला। एक नियम कानून एक का मुँह बंद करता है तो दूसरे प्यासे प्रतीक्षित का मुँह खोल देता है। *एकलव्य के साथ नाइंसाफी* का रोना रोने वाले अपने *भीतर का द्रोण* नहीं देख पाते है। *ज्वेलर्स* को 8 तारीख को मौका मिला उन्होंने खूब बनाया... और- अब *बैंक मैनेजर* की बारी है। शायद- कल किसी *इन्कम टैक्स* वाले की बारी हो। हम

हम कहाँ गलत हैं?

लेख पूरा पढ़े .. प्रश्न :- मैं एक पढ़ा लिखा मुस्लिम हूँ l मेरी अपनी खुद की एक राजनीतिक सोच है और यदि मैं मोदी का विरोध करता हूँ तो मैं देशद्रोही कैसे हो गया ? उत्तर :- मोदी जी ने अपनी शख्शियत ऐसी बनाई है की वो देशभक्ति का  पर्यायवाची शब्द बन गये है l और जब कोई उनके विरोध में खड़ा होता है तो वो स्वतः अपने आप को देशद्रोहीयों की कतार खड़ा पाता है l ऐसी परिस्थिति में वो और भी ज्यादा  खिजकर मोदी विरोध करता है और मोदी विरोध करते करते देशविरोध की सीमा भी लांघ जाता है l प्रश्न :- मोदी जी देशभक्ति का पर्याय कैसे है ? उत्तर :- मोदी जी का आज तक का राजनीतिक जीवन निष्कलंक रहा है l उन्होने हमेशा अपने राज्य और देश की भलाई के लिये काम किया है l मोदी जी ने कोई भ्रष्टाचार नही किया मोदी जी के पास अपनी कोई सम्पत्ति नही है l मोदी जी का अपना खुद का कोई परिवार नही है l मोदी जी के भाई बहन अत्यंत साधारण जीवन यापन करते है l प्रश्न  :- निष्कलंक !!!...लेकिन मोदी ने गुजरात में मुस्लिमों का कत्लेआम कराया था l वो ? उत्तर :- दंगे हमेशा दुर्भाग्यपूर्ण होते है l और ये पहला या अंतिम दंगा नही था l इसस