अभिवक्ति की स्वतंत्रता वही तक सिमित है जहाँ पर
दूसरे की स्वतंत्रता शुरू हो जाती है। रानी पद्मिनी को लेकर जो बवाल
मचा है, उस के संदर्भ में यह लेख उद्रित है। अपने बहूत सारे लाभ के लिए फ़िल्मकार
ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़खानी करते आये है। इसके पीछे बनने वाली फिल्म का
प्री प्रचार है। रानी पद्मिनी के साथ समुदाय विशेष के साथ ऐतिहासिकता भी जुडी
हुई है। कैसे तथ्यों को तोड़ कर कोई किसी की भावनाओ के साथ खिलवाड़ कर सकता है? अगर
किसी फिल्म के प्रोड्यूसर, हीरो, या किसी भी तरह के व्यक्ति जो उस फिल्म से जुड़ा
हुवा है, को इस तरह की अप्रिय घटना का सामना करना पड़ता है, तो इसके लिए वह
स्वयं दोषी है। फिल्म से जुड़े हुए लोगो को रानी व उस समय के इतिहास का अध्ययन करना
चाहिए। अपने लाभ के लिए इतिहास के साथ छेड छाड़ नहीं करनी चाहिए। अपनी रचना से समाज
को सन्देश दे रहे है, तो समाज के हर वर्ग व भावी पीढ़ी का ख्याल रखना चाहिए।
रानी पद्मिनी की कहानी को पहले ही बहूत तोड़ मरोड़ कर, काल्पनिक रूप से लिखा गया है।
लेकिन फ़िल्मकार जो बताना चाह रहा है, वह तो मुस्लिम इतिहासकारों ने भी नहीं लिखा।
रानी पद्मिनी की कहानी इतिहासकारों की नजर में।
रानी
पद्मिनी सिंघल द्वीप जो वर्तमान श्रीलंका में है वहां के सिंघल राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी थी। पद्मिनी
अद्वितिय सुन्दर थी।
चितोड़ के राजा रतनसिंह के साथ ब्याही गई थी।
फरिश्ता ने चित्तौड़ की चढ़ाई 1303 के लगभग 300 वर्ष बाद और जायसी की पद्मावत में (रचनाकाल 1540 ई.) की 70 वर्ष पश्चात् सन् 1610 में पद्मावत के आधार पर इस वृत्तांत का उल्लेख किया जो तथ्य की दृष्टि से विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता।
दूसरेइतिहासकार ओझा का कथन है कि पद्मावत, तारीखे फरिश्ता और अंग्रेज इतिहासकार कर्नल टाड के संकलनों में तथ्य केवलयहीं है कि चढ़ाई और घेरे के बाद अलाउद्दीन ने चित्तौड़ को विजित किया, वहाँ का राजा रत्नसेन मारा गया और उसकी रानी
पद्मिनी ने राजपूत स्त्रियों के साथ जौहर की अग्नि में अपने आप की आहुति दी। इसके अतिरिक्त अन्य सब बातें कल्पित हैं।
रतन सिंह के दरबार में
राघव नाम का एक पंडित था, जो असत्य भाषण के कारण रतनसिंह द्वारा निष्कासित होकर
तत्कालीन सुल्तान अलाउद्दीन की सेवा में जा पहुँचा और जिसने उससे पदमावती के
सौंदर्य की बड़ी प्रशंसा की। अलाउद्दीन पदमावती के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन सुनकर
उसको प्राप्त करने के लिये लालायित हो उठा और उसने इसी उद्देश्य से चित्तौड़ पर
आक्रमण कर दिया। दीर्घ काल तक उसने चित्तौड़ पर घेरा डाले रखा, किंतु कोई
सफलता होती उसे न दिखाई पड़ी, इसलिये उसने धोखे से रतनसिंह राजपूत को बंदी करने का
उपाय किया। उसने उसके पास संधि का संदेश भेजा, जिसे रतन सिंह राजपूत ने स्वीकार कर
अलाउद्दीन को विदा करने के लिये गढ़ के बाहर निकला, अलाउद्दीन ने उसे बंदी कर
दिल्ली की ओर प्रस्थान कर दिया।
जिस समय वह दिल्ली में बंदी
था, कुंभलनेर के राजा देवपाल ने पदमावती के पास एक दूत भेजकर उससे प्रेमप्रस्ताव
किया था। रतन सिंह राजपूत से मिलने पर जब पदमावती ने उसे यह घटना बताई तो, वह
चित्तौड़ से निकल पड़ा और कुंभलनेर जा पहुँचा। वहाँ उसने देवपाल को द्वन्द
युद्ध के लिए ललकारा। उस युद्ध में वह देवपाल की सेल से बुरी तरह आहत हुआ और
यद्यपि वह उसको मारकर चित्तौड़ लौटा किंतु देवपाल की सेल के घाव से घर पहुँचते ही
मृत्यु को प्राप्त हुआ। पदमावती और नागमती ने उसके शव के साथ चितारोहण किया।
अलाउद्दीन भी रतनसिंह राजपूत का पीछा करता हुआ चित्तौड़ पहुँचा, किंतु उसे पदमावती
न मिलकर उसकी चिता की राख ही मिली।
Good
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