वेलेंटाइन और हम भारतीय।
वैलेंटाइन डे आप कैसे मनांते हैं? क्या है इसमें, ये किसकी परम्परा है ? ये कहाँ से खड़ा हुवा था ? इटली में पैदा हुवा एक साधारण इंसान। कट्टर ईसाई। वैलेंटाइन उन्होंने एक लड़की के साथ शादी की थी। वहां के राजा को ये नागवार गुजर था। वे उन्हें ईसायियत से और इस तरह के प्रेम आचरण जो की आने वाली पीढ़ी को गलत सन्देश देने वाली थी, से बहार करना चाहते थे। तात्कालिक परिस्थितियों में राजा गलत नहीं थे। 14 फरवरी को उनकी मौत हुयी और वहां का एक समुदाय विशेष इसे एक उत्सव के रूप में मनाने लगा। धीरे धीरे समय ने करवट ली। जो समुदाय विशेष इसे शुरू में मनाने लगा था, वो वहां का शक्तिशाली समुदाय था। इसे एक त्यौहार के रूप में मनाने लगा। देखा देखी वहां का निम्न वर्ग शक्तिशाली समुदाय के निकट आने की जुगत में उनका अनुसरण करने लगा। शक्तिशाली समुदाय ने उन्हें स्व संत घोषित कर दिया। तदुपरांत यूरोप भयंकर सक्रमण काल से गुजरा और लोग भूल गए। परम्परा चलती रही। संत की उपाधि लग चुकी थी। यूरोपीय लोग अपनी परम्पराओ से बहूत प्यार करते है। हम भारतीय उनकी नक़ल करते है। ओधोगिक विकास ने माइग्रेशन को बढ़ावा दिया। भारतीय पूरी दुनिया में आने जाने लगे। जो ओधोगिक विकास में उन्नति करते गए, उन्होंने वहां की परम्परा को अपनाना शुरू कर दिया। उनके कारण ये संस्कृति भारत में आ गयी।
यक्ष प्रश्न
हम क्यों मनाएं ?
कौन मर गया जिसकी याद में हम 14 फरवरी को ये दिन मनाने लगे ? कोनसा इतिहास आप के घर में रचा गया जिसकी याद में वेलेंटाइन डे मना रहे हो ? शादी का दिन मना लेते। पति व पत्नी का प्रेम तो सदैव होना चाहिए, प्रतिपल होना चाहिए। वो मात्र चमड़ी का नहीं, दिल का होना चाहिए। ह्रदय की गहराइयों से उत्पन्न प्रेम ही अजर अमर प्रेम होता है। क्या साबित करना चाहते हो ? कभी नुमाइश की है अपने प्रेम की ? झूट सब झूट। शादी के बाद कब आपने अपनी पत्नी से प्रेम का इजहार किया ? मृगतृष्णा में जी रहे हो ? जो नहीं मिला उसके पीछे भाग रहे हो ? हम सब चमड़ी के पुजारी हैं। इसलिए आप और मैं घिनोने इंसान है। मुझे माफ़ करना हम सब चमड़ी पसंद करने वाले लोग है। हम सब लोग सिर्फ खूबसूरती देखते है। नैन, नक्स देखते है, होठ देखते है, स्टाइल पर मरते है, अदाओं पर मरते है, फिगर देखते है, गाल कैसे है ? नाक कैसा है, बाल कैसे हैं ? रंग कितना गोरा है? कितनी मधुर सुरीली आवाज़ है ? कितने बेशर्म, बेहया लोग है, हम। क्यों ? क्योंकि, हम हवस के पुजारी है। इसलिए ये सब दिखता है। और अपनी अतृप्त इच्छा की पूर्ति करने के लिए इस दिन का इंतजार करते है। इसीलिए वहां के तत्कालीन राजा ने उन्हें निष्कासन दिया था। सही किया था उन्होंने दूरदर्शी थे, आने वाले दुष्परिणामों से वाकिफ थे। आज देख लो परिणाम आप के सामने है।
हमारे प्यार का तकाजा,प्यार का अर्थ, प्यार का रूप भी सिर्फ चमड़ी तक ही सिमित हो गया है। अगर उसके आगे आप का प्यार है तो वेलेंटाइन डे की जरुरत नहीं है। हमारे माता -पिता भी आपस में प्यार करते थे एक दूसरे से। मेरी और आप की माँ भी प्यार करती थी अपने पतियों से। हमारे पिता भी प्यार करते थे। क्या कभी ऐसा किया था उन्होंने। गुलाब के फूल नहीं थे क्या ? इत्र नहीं था क्या ? सब था सिर्फ इजहार करने का तरीका ये नहीं था। हम मुर्ख लोग किस परम्परा का पालन कर रहे हैं ?
उस वक्त इजहार करने के लिए बॉडी स्प्रे, परफ्यूम, महंगे गिफ्ट, सैम्पू, महंगी ज्यूलरी, होटल संस्कृति, वो महंगे बाथ टब नहीं रहे होंगे जिसमें साथ स्नान कर सकें खूबसूरती के अन्य अंदाज नहीं रहे होंगे। कुछ नहीं था। तो क्या हमारे माँ बाप ने प्यार नहीं किया था?
जीवन की पवित्रता थी, समर्पण का भाव था, अर्धाङ्गिनी का वो रूप रहा होगा, वो गहरी आत्मीयता रही होगी, वो दिल रहा होगा, वो प्यार रहा होगा, वो घनिस्टता रही होगी। मेरा ये मानना है, की हम में से अधिकांश के माँ बाप ने अभी तक माँ ने बाप को नहीं छोड़ा है, और बाप ने माँ को। ना तलाक दिया ना एतराज किया। ना हमारी माँ हमारे बाप को छोड़कर पीहर गयी। ना हमारे पिता ने हमारी माँ को घर छोड़कर जाने के लिए कहा, भले ही मेरे पिता नाटे रहे होंगे या आप में से बहुतों के पिता दुबले पतले रहे होंगे। माँ दुबली पतली रही होगी, नाटी रही होगी और भी असमानताएं रही होंगी लेकिन फिर भी आप देख रहे हो ये जोड़ियां आज भी कायम हैं। जिसके परिणाम के रूप में आप और मै हूँ।
भले पिता काले रहे होंगे, भले माँ ठिगनी रही होंगी, पिता लंबे रहे होंगे। पिता मंद बुद्धि रहे होंगे माँ लूली रही होंगी। कितनी ही असमानताएं रही होंगी लेकिन उन जोड़ो को आज भी आप देख रहे होंगे। आज भी कामयाब है।
आज तो हम इंच इंच देखते है, सेंटीमीटर में देखते है। नाक नक्स देखते है। आज हम देखते है, कि इसकी ऑंखें बराबर नहीं है, उसके होठ बराबर नहीं है, वो बोलती है, तो ऐसे ऐसे बोलती है, या जो वो है ना वो भेंगा देखता है, चलने में थोड़ा प्रॉब्लम है, रंग भी सांवला है, सूंदर नहीं है इसलिए मुझे पसंद नहीं है।
अरे डूब मरो शर्म करो बेहूदे इंसानो। इंसानो के रूप में भेड़ियों। चमड़ी के पुजारियों हम दिल कब तलाशेंगे। हम अछी सोच कब तलाशेंगे। हमारे संस्कार तो ये नहीं है। हमारी व्यवस्थाएं कब लागु करेंगे? इंसानियत के तौर पर इस दुनिया में ज्ञान का दिया कब जलाएंगे। सब का मन तो पवित्र नहीं हो सकता सब साधु तो नहीं बन सकते, सब साध्वियां तो नहीं बन सकती, लेकिन स्नातन धर्म का अगर थोड़ा सा भी अंश तुम में बाकि है तो आंखे खोलो !!!!
हर कोई त्यागी बन कर इस मार्ग पर नहीं चल सकता। शादी करना जीवन की आवश्यकताओं में से एक है ये मैं मानता हूँ। अधिकांश लोग गृहस्थ जीवन यापन करेंगे। शादी करेंगे, पाणिग्रहण होगा और घर बस जायेगा। घर बसने के बाद कौन क्या कर रहा है ये उस पर छोड़ दो। समाज में रहना है तो व्यवस्थाएं अपनांनी होंगी। लेकिन ये पहले क्या कर रहे हो मुर्ख लोगो।
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14th February |
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